•1 क्वालिटी चुनें, क्वांटिटी नहीं

कृष्ण कौरवों और पांडवों दोनों में किसी का भी विनाश नहीं चाहते थे। वे आखिर तक युद्ध को टालने के प्रयास करते रहे, लेकिन युद्ध अनिवार्य हो गया था। कृष्ण ने दुर्योधन और अर्जुन दोनों को एक विकल्प दिया-एक तरफ मेरी अक्षौहिणी नारायणी सेना है तो दूसरी एक तरफ मैं अकेला। जिसे जो चाहिए लीजिए, तरफ क्वांटिटी थी तो दूसरी ओर अकेले कृष्ण, वह भी निहत्थे, हालांकि क्वालिटी से भरपूर । दुर्योधन नेक्वांटिटी चुनी तो अर्जुन ने क्वालिटी। लेकिन युद्ध का परिणाम क्या हुआ, सब जानते हैं। तो गिनती की दौड़ में ना पड़ें, गुणवत्ता की खोज करें। विजय निश्चित है।

 

•2 समय के साथ बदल जाएं

चौसर में हारने के बाद पांडवों को 12 साल के वनवास और एक साल के अज्ञातवास पर जाना पड़ा। अज्ञातवास की परिस्थिति बेहद कठिन थी। उन्हें हर हाल में छुपना ही था और छुपने वाले भी कौन, वे जो लाखों में भी पहचान लिए जाएं, पांडव पुत्र । इनका अज्ञात रहकर छिपे रहना एक असंभव-सी चुनौती थी। लेकिन इस चुनौती से घबराकर इस पर आंसू बहाने के बजाय पांडवों ने तय किया कि समय बदला है, तो हम भी बदल जाएं। वे छिपने के लिए राजा विराट के यहां जा पहुंचे। वीर पुरुष अर्जुन बृहन्नला का रूप धरकर राजा की बेटी उत्तरा को नृत्य सिखाने लगे। युधिष्ठिर जो खुद चौसर में हार गए थे, वे राजा विराट को चौसर सिखाने लगे। इसी बहाने उनको महल में रहने की अनुमति मिल गई। भीम जिनका भोजन सैकड़ों रसोइये मिलकर बनाते थे, वे खुद रसोइया बन गए। और द्रौपदी जिनके आगे-पीछे दासियों की सेना चलती थी, वह स्वयं दासी बनकर रानी सुदेशणा की सेवा करने लगीं। उन्होंने यही सोचा, जब आंधी गुजर जाएगी, फिर जौहर दिखाएंगे। वक्त अच्छा है तो मखमल पर कदम रखते हैं, वरना अंगारों पर चलने का भी दम रखते हैं।

 

•3 अपनी जानकारी अपडेट करें

अभिमन्यु अर्जुन का पुत्र था, जो महापराक्रमी और जन्मजात यौद्धा था। कहते हैं उसने मां के पेट में ही चक्रव्यूह को तोड़ने की विद्या सीख ली थी। लेकिन गलती क्या हुई कि उसने अपनी विद्या को कभी अपडेट नहीं किया। उसने जितना सीखा था, उसी पर रुक गया। शिक्षा पूरी नहीं की। परिणाम यह हुआ कि वह चक्रव्यूह तोड़कर उसमें प्रवेश तो कर गया, लेकिन वापस जीवित नहीं लौट पाया, क्योंकि उसने वापस लौटने का पाठ कभी पढ़ा ही नहीं था। इस तरह संभावनाओं से भरा हुआ एक तेजस्वी युवक अकाल मृत्यु के अंधकार में खो गया, सिर्फ इसलिए कि उसकी जानकारी अधूरी रह गई थी।

 

•4 महत्वाकांक्षा-लालच के बीच अंतर

आप बहुत बड़े आदमी बनना चाहते हैं, बहुत पैसा कमाना चाहते हैं, शोहरत पाना चाहते हैं तो यह महत्वाकांक्षा है। लेकिन यह सब अगर आप किसी का हक मारकर करना चाहते हैं तो यह लालच है। महत्वाकांक्षा जितनी अच्छी चीज है, लालच उतनी ही खराब। दुर्योधन चक्रवर्ती सम्राट बनना चाहता था। उसकी महत्वाकांक्षा थी कि सिर्फ हस्तिनापुर ही नहीं, दसों दिशाओं में उसका राज हो। लेकिन उसे लालच का अभिशाप डस गया। उसने अपने ही भाइयों का हक मारना चाहा। पांडवों को पांच गांव देने से भी मना कर दिया। फिर क्या हुआ ? हस्तिनापुर का वह राजा जो जमीन पर पैर नहीं रखता था, कुरुक्षेत्र की धूल में लोटते हुए मारा गया।

 

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